7 Apr 2023

Class 10 Hindi Chapter 1 Niv Ki Int Question Answer

Class 10 Hindi Chapter 1 Niv Ki Int Question Answer

Class 10 Hindi Chapter 1 Niv Ki Int Question Answer


Class 10 Hindi Chapter 1 Niv Ki Int Question Answer: नींव की ईंट कक्षा 10 की हिंदी NCERT पाठ्यपुस्तक आलोक भाग 2 का पहला अध्याय है । नींव की ईंट रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखा गया है। यहां आपको कक्षा 10 हिंदी अध्याय 1 नींव की ईंट का प्रश्न उत्तर Class 10 Hindi Chapter 1 Niv Ki Int Question Answer पढ़ने को मिलेगा।




नींव की ईंट Niv ki Int Class 10 Hindi HSLC SEBA Questions Answers


प्रश्न 1. पूर्ण वाकय् में उत्तर दो : 


(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहां हुआ था ?

उत्तर: रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 1902 ईं में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुरी नामक गाँव में हुआ था।



(ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएं क्यों करनी पड़ी थी ?

उत्तर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में जुड़े होने और अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने के जुर्म में जेल की यात्राएं करनी पड़ी थी।



(ग) बेनीपुरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था ?

उत्तर: बेनीपुरी जी का स्वर्गवास 1968 मैं हुआ था ।



(घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः किस पर टिकी होती है ?

उत्तर: चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः अपनी नींव पर टिकी होती है।



(ड॰) दुनिया का ध्यान सामान्यतः किस पर जाता है ?

उत्तर: दुनिया का ध्यान सामान्यतः ऊपरी आवरण और चमक पर जाता है।



(च) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा ?

उत्तर: इसका परिणाम नींव के ऊपर जितने भी इमारते हैं वें सभी धारा शाही होकर गिर पड़ेंगे।



(छ) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है ?

उत्तर: सुंदर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है।



(ज) लेखक के अनुसार गिरिजाघरों के कलश वस्तुतः किनकी शहादत से चमकते हैं ?

उत्तर: उन अनेक अनाम लोगों की शहादत से चमकते हैं, जिन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार में खुद को समर्पित कर दिया।



(झ) आज किसके लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है ?

उत्तर: आज इमारत का कंगूरा बनने, यानी अपने आपको प्रसिद्ध करने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है।



(ञ) पठित निबंध में 'सुंदर इमारत' का आशाय क्या है ?

उत्तर: पठित निबंध में 'सुंदर इमारत' का आशाय है "नया सुंदर समाज।"




नींव की ईंट (Niv Ki Int) Class 10 Hindi Chapter 1 Questions Answers


प्रश्न 2. अति संक्षिप्त उतर दो (लगभग 25 शब्दों ) :


(क) मनुष्य  सत्य से क्यों भागता है ?

उत्तर: सत्य हमेशा कठोर अर्थात कड़वा होता है। अक्सर सत्य झूठ का पर्दाफाश कर देता है। कठोरता और भद्दापन एक साथ पनपते हैं। इसी कारण मनुष्य कठोरता से बचने और भद्देपन से मुख मोड़ने के लिए सत्य से भागता है।



(ख) लेखक के अनुसार कौन सी ईंट अधिक धन्य है ?

उत्तर: लेखक के अनुसार वह ईंट जो इमारत को मजबूत करने और बाकी ईंटो को आसमान छूने का मौका देते हुए  खुद जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ जाती है और खुद को दूसरों के लिए बलिदान कर देती है, वह ईंट धन्य है।



(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है ?

उत्तर: नींव की ईंट ही वह ईंट है, जो इमारत की मजबूती और दृढ़ता को  बनाएं रखती है। बाकी सभी ईंट नींव की ईंट पर ही निर्भर करती है। इसीलिए हम यह कह सकते हैं कि नींव की ईंट की भूमिका ही सबसे  महत्वपूर्ण होती है।



(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो।

उत्तर: कंगूरे की ईंट इमारत की ऊपरी खूबसूरती को दर्शाती है, तथा वह अपनी बनावट एवं खूबसूरती से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब होती है।



(ड॰) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों?

उत्तर: शहादत का लाल सेहरा वे लोग पहनते हैं, जो देश के लिए अपना अस्तित्व निछावर कर देते हैं। ताकि बाकी लोग इस संसार का लुफ्त अच्छी तरह उठा सके।



(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया और कैसे?

उत्तर: लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन लोगों ने अमर बनाया जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में स्वयं को बलिदान कर दिया। बिना स्वार्थ के वे हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गए, कई तो जंगलों में भटकते हुए जंगली जानवरों का शिकार बन गए। अपने बलिदान के बल पर उन्होंने ईसाई धर्म को अमर बनाया। उन्होंने कभी नाम कमाने या प्रसिद्ध होने की चाहत नहीं रखी। आज इसाई धर्म उन्हीं की देन है।



(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है?

उत्तर: आज हमारे देश के नौजवानों के सामने यह चुनौती है कि वे समाज का नव-निर्माण करें और निर्माण करते वक्त इमारत का कंगूरा बनने की बजाएं नीव की ईट बनने का इरादा एवं साहस रखें। ताकि उनके हाथों एक सुंदर भविष्य का निर्माण हो।




Class 10 Hindi Elective Chapter 1 Questions Answers


प्रश्न 3. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) 


(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता ?

उत्तर: सुंदरता हमेशा दूसरों को अपनी और आकर्षित करता है। इमारत के कंगूरे भी देखने में सुंदर लगते हैं। क्योंकि वह सबसे ऊपर रहकर अपनी आकृति, बनावट और खूबसूरती से सब का ध्यान खींचने में कामयाब होता है।लेकिन नींव की ईंट जो सुंदर कंगूरे के नीचे गड़ा होता हैं उसे कोई नहीं देखता अतः वह खुद भी नहीं चाहता की उसे कोई देखें, उसकी प्रशंसा करें। यही कारण है कि मनुष्य का ध्यान नींव की ईंट की ओर नहीं बल्कि कंगूरे की ओर जाता है।



(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्यों आह्वान किया है ?

उत्तर: कोई भी इमारत हो उसकी मजबूती नींव की ईंट पर निर्भर करती है। नींव की ईंट जितना मजबूत होगा इमारत भी उतनी ही मजबूती से खड़ा रहेगा। लेकिन विडंबना यह है कि जिस ईंट के ऊपर वह सुंदर आलीशान भवन खड़ा है उसकी कोई भी प्रशंसा नहीं करता, बल्कि इमारत की कंगूरे को खूबसूरती से निहार कर सब उसकी तारीफ करते हैं। असलियत में नींव की ईंट की भूमिका से ही आज  कंगूरे का वजूद है।यही कारण है कि लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए सभी को आह्वान किया है।



(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं, परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते ?

उत्तर: इमारत पर लगे कंगूरे को देखकर लोग प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी प्रशंसा करने लगते हैं। अर्थात यहां कहने का तात्पर्य यह है कि लोग प्रसिद्ध होने या प्रशंसा पाने या अन्य किसी स्वार्थ के लिए समाज में लालच में आकर अपना योगदान बनाए रखना चाहता है। लेकिन समाज के लिए वह त्याग या बलिदान  देने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसे पता है नींव की ईंट बनने पर उसका कोई लाभ या वजूद नहीं रहेगा। इसीलिए लोग नींव की ईंट की बजाय कंगूरे की ईंट बनना पसंद करते हैं।



(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हे देना चाहता है और क्यों ?

उत्तर: लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन अनजान, बेनाम लोगों को देना चाहते हैं जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बिना किसी स्वार्थ के खुद को बलिदान कर दिया।


लेखक उन्हें इसलिए श्रेय देना चाहते है, क्योंकि उनके बलिदान हेतु आज ईसाई धर्म का वजूद है। उन्होंने बिना किसी लालच और स्वार्थ के अपने को ईसाई धर्म के  प्रचार-प्रसार में इस कदर सौंप दिया कि उनमें से कई लोग तो सूली पर भी चढ़ गए और कई लोग तो जंगल में जंगली जानवरों का शिकार बन गए। उन्होंने ऐसा सिर्फ धर्म के प्रचार तथा धर्म को अमर बनाने के लिए क्या।



(ड॰) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ ?

उत्तर: हमारा देश उन बलिदानों के कारण आजाद हुआ जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ एवं लोभ के अपने देश के नाम खुद को सौंप दिया। उनमें से  कईयों के नाम आज इतिहास में दर्ज है, परंतु हमारे भारत के कोने कोने में हजारों ऐसे भी लोग थे, जिनका ना ही समाज में नाम आया ना ही उन्होंने समाज में खुद को प्रसिद्ध करने की चाह रखी। वें हजारों तो बेनाम रहकर भी देश के लिए मर मिटे। उन्हीं अनाम  लोगों के बलिदानों के कारण आज हमारा देश आजाद है।



(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है ?

उत्तर: भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने नौजवानों को आह्वान किया  है कि वे अपने सच्चे मन से देश की तरक्की के लिए अपना सहयोग एवं योगदान दें।आज हमारे देश में लाखों गांव, हजारों सेहरो और कारखानों का नव-निर्माण करना जरूरी है, तभी भारत प्रगति की राह पर चल पाएगा। लेखक यह भी कहते हैं कि इस तरक्की में वे शासकों से कोई उम्मीद भी नहीं रखते। क्योंकि वे शासक देश की नहीं बल्कि अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु काम करते हैं। इसलिए लेखक सिर्फ उन्हीं नौजवानों पर विश्वास रखते हैं जो खुद को इस कार्य में अपने आप को सौंप दें। लोभ, प्रशंसा नाम के चक्कर में ना फंसे अपने लक्ष्य पर ही ध्यान दें तब जाकर हमारा देश प्रगति की राह पर चल पाएगा।


इसीलिए लेखक ने इस पाठ के जरिए नवयुवकों को कंगूरा बनने के बजाय नींव की ईंट बनकर देश का नाम रोशन करने की सलाह दी है।




नींव की ईंट Niv ki Int Class 10 Hindi Aalok Bhag 2 Long Questions Answers HSLC SEBA 


प्रश्न 4. सम्यक उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में) 


(क) 'नींव की ईंट' का प्रतीकार्थ स्पष्ट करो।

उत्तरः नीव की ईट का प्रतीकार्थ है- समाज का अनाम शहीद जो बिना किसी यश-लोग के समाज के नव-निर्माण हेतु आत्म-बलिदान के लिए प्रस्तुत है। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के सैनिकगण नीव की ईट की तरह थे। हमारा देश उनके बलिदान के कारण आजाद हुआ। आज नए समाज निर्माण के लिए हमें नीव की ईट चाहिए।पर अफसोस है कि कंगूरा बनने के लिए चारों ही होड़ा-होड़ी मची है, नीव की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है। अर्थात देश की प्रगति के लिए काम करनेवालों की संख्या घट रहा है और अपना स्वार्थ के लिए काम करने वालों की संख्या दिन-व-दिन बढ़ रहा है।



(ख) 'कंगूरे की इंट' के प्रतीकार्थ पर सम्यक् प्रकाश डालो।

उत्तरः कंगुरे की ईट के प्रतीकार्थ है: प्रशंसा अथवा अन्य किसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहता है। स्वतंत्र - समाज का यथ लोभी सेवक, जो प्रसिद्धि भारत के शासकगण कंगूरे की ईट साबित हुआ। क्योंकि वे अपना स्वार्थ सिद्धि के लिए अपना आसन रक्षा हेतु तथा अपना मकसद सिद्धि हेतु काम किये रहे। उनको दृष्टि में क्या देश, क्या राज्य क्या शहर या गाँव ध्यान देने का अवसर नहीं केवल दिखाने के लिए ही इधर-उधर दौड़ता। ताकि लोगें की दृष्टि में कंगुरे की ईट बन सके। 



(ग) 'हाँ, शहादत और मौन-मूक! समाज की आधारशिला यही होती है'- का आशय बताओ।

उत्तरः हा, शहादत और मौन-मूक। समाज की आधारशिला कहा गया है। क्यों कि इसी से समाज का निर्माण होता है। ईसाई लोगों की शहदूत ने ईसाई धर्म को अमर बनाया। उन लोगों ने धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया। उनके नाम शायद ही कही लिखे गए हों- उनकी चर्चा शायद ही कही होती हो। किंतु ईसाई धर्म उन्ही के पुण्य-प्रताप से फल-फूल रहा है। वैसे ही हमारा देश आजाद हुआ उन सैनिकगण के बलिदानों के कारण, जिनका नाम इतिहास में नही है। आज भारतवर्ष के सात लाख गाँव, हजारों शहरों और सैकड़ो कारखानों के नव-निर्माण हुआ है। इसे कोई शासक अकले नही किया। इस के पीसे कई नौजवनों की मौन आत्म बलिदान हैं। अतः यह स्पष्ट है कि शहादत और मौन- मूक समाज निर्माण की आधारशिला है। 




Class 10 Hindi Elective Chapter 1 नींव की ईंट Question Answer 


प्रश्न 5. सप्रसंग व्याख्या करो 


(क) "हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से भी आते हैं"।

उत्तर: संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्य-पुस्तक 'आलोक भाग -2' के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' पाठ से लिया गया है।


प्रसंग- इन पंक्तियों के जरिए लेखक ने सत्य की कठोरता और मनुष्य क्यों सच्चाई से भागता है उसका जिक्र किया गया है।


वाख्या- मनुष्य का स्वभाव रहा है कि, वह सब कुछ आसानी से पाना चाहता है। कठोरता से पलायन करने की आदत उसे हमेशा से ही रही है। विडंबना यह है कि आज आसान रास्ता अपनाने के चक्कर में सत्य का मार्ग छोड़ झूठ, ठग आदि का सहारा लिया जा रहा है। सभी को पता है कि सत्य कठोर होता है। सत्य का सामना करना चुनौती भरा है। इसीलिए वे सत्य से भागने का मौका ढूंढा करते हैं। यहां तक कि मनुष्य कुत्सित एवं बदसूरत चीजों से भी अपना मुंह मोड़ लेते हैं। उन्हें यह सब पसंद नहीं। उन्हें तो सिर्फ सुंदर चीजों की कदर है। पर सच्चाई यही है कि सच अक्सर कड़वा होता है। इसीलिए मनुष्य कड़वेपन से बचने के लिए  सच से भी भागते हैं।



(ख) "सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।"

उत्तर: संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग -2 के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' नामक निबंध से लिया गया है।


प्रसंग- इन पंक्तियों में सुंदर सृष्टि के पीछे किस प्रकार बलिदानों की आवश्यकता होती है इसका जिक्र किया गया है।


व्याख्या- यहां सुंदर सृष्टि का आशय सुंदर समाज से है। जिस प्रकार एक सुंदर मकान बनने के पीछे जमीन के नीचे गड़े ठोस ईंटो का अहम भूमिका होता है। ठीक उसी प्रकार एक सुंदर समाज गढ़ने के पीछे उन महान व्यक्तियों का हाथ होता है जिन्होंने अपना बलिदान हंसते-हंसते दे दिया। बलिदान देकर जिस ईंट ने सुंदर महल का निर्माण किया उसका सारा श्रेय ऊपरी मंजिलें अपने नाम कर लेती है। अतः सुंदर इमारत हो या सुंदर समाज वह हमेशा बलिदान मांगती है। चाहे वह कोई ईंट हो या कोई व्यक्ति। अगर हम अपने स्वार्थ के बारे में सोचकर बलिदान से दूर भागेंगे तो सुंदर सृष्टि का निर्माण असंभव है।




(ग) "अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों और होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है!"

उत्तर: संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित 'नींव की ईंट' नामक निबंध से लिया गया है।


प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में शासक बनने की चाह और समाज सेवक बनने की कामना किस प्रकार लुप्त होती जा रही है उसका वर्णन है।


व्याख्या- आज समाज की स्थिति ऐसी है कि लोग अपने आप को सबसे ऊंचे पायदान पर पाना चाहता है। चारों ओर एक दूसरे से बेहतर बढ़ने की भागदौड़ मची हुई है।यहां कंगूरे का आशय उन्हीं लोभी और शासकों से है, जो अपने स्वार्थ के लिए समाज का काम करना चाहता है। उन्हें समाज से कोई लेना देना नहीं है, वे तो अपनी पूर्ति हेतु समाज से जुड़े होने का ढोंग रचा करते हैं। लेकिन जिस समाज में रहकर वह आज प्रसिद्ध हुए, उस समाज को बनाने में उन महान कार्यकर्त्ताओं और अनाम व्यक्तियों का हाथ है जिन्होंने स्वार्थ को त्यागकर समाज के लिए अपना बलिदान दे दिया। अतः हम यह कह सकते हैं कि वह लोग ही नींव की ईंट है जिसके कारण समाज टिका हुआ है।पर आज कोई भी उस नींव की ईंट बनने की ख्वाहिश नहीं रखता। वह कार्यकर्ता जो पहले अपना बलिदान देने में संकोच नहीं किया करते थे, आज उन जैसे कार्यकर्ता बनने की चाह लुप्त हो रही है।




भाषा एवं व्याकरण ज्ञान 


प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों में से अरबी-फारसी के शब्दों का चयन करो


इमारत, नींव, दुनिया, शिवम, जमीन, कंगूरा, मुनहसिर, अस्तित्व, शहादत, कलश, आवरण, रोशनी, बलिदान, शासक, आजाद, अफसोस, शोहरत ।


उत्तर: अरबी: दुनिया, मुनहसिर, आवरण, रोशनी,शासक ।


फारसी: इमारत, जमीन, शहादत, आजाद, अफसोस,  शोहरत ।


(वाकी संस्कृत से आए हिन्दी शब्द)



प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाओ 


चमकीली, कठोरता, बेतहाशा, भयानक, गिरजाघर, इतिहास ।


उत्तर: (i) चमकीली: आकाश के चमकीली तारों को देखकर बच्चा स्थिर हो गये।


(ii) कठोरता: कठोरता उन्नति का प्रतिशब्द है।


(iii) बेतहाशा: कोई काम करने से सोच समझकर करना चाहिए नहीं तो बेतहाशा हो जायेगा।


(iv) भयानक: जंगल में भयानक जनबर होती है


(v) गिरजाघर: गिरजाघर में प्रार्थना चल रहे हैं ।


(vi) इतिहास: इतिहास से ही नये समाज बनाने का प्रेरणा मिलती हैं। 



प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करो


(क) नहीं तो, हम इमारत की गीत नींव की गीत से प्रारंभ करते ।

उत्तर: नहीं तो, हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते ।


(ख) ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फुल रहे हैं 

उत्तर: ईसाई धर्म उनके पुण्य प्रताप से फल-फुल रहा हैं।


(ग) सादियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हम पहला कदम बढ़ाए हैं।

उत्तर: सादियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाए हैं।


(घ) हमारे शरीर पर कई अंग होते हैं।

उत्तर: हमारे शरीर में कई अंग होते हैं ।


(ङ) हम निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।

उत्तर: हमें निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं ।


(च) सव ताजमहल की सौन्दर्यता पर मोहित होते हैं।

उत्तर: सव ताजमहल की सौन्दर्य पर मोहित होते हैं।


(छ) गत रविवार को वह मुंबई जाएगा।

उत्तर: गत रविवार को वह मुंबई गये ।


(ज) आप कृपया हमारे घर आने की कृपा करें। 

उत्तर: आप कृपया हमारे घर आए।


(झ) हमें अभी बहुत बातें सीखना है ।

उत्तर: हमें अभी बहुत बातों को सीखना हैं । 


(ञ) मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद का आभास हुआ। 

उत्तर: मैंने यह निबंध पढ़कर आनन्द का आभास पाया।



प्रश्न 4. निम्नलिखित लोकोक्तियों का भाव-पल्लवन करो :


(क) अधजल गगरी छलकत जाए।

उत्तर: इसका अर्थ यह है कि बह घड़ा हमेशा छलकती रहा है जिसमे जल पुरी तरह भरा नहीं होता। यदि घड़ा पुरी तरह भरा होता तो पानी इधर उधर छलकने का डर नहीं होता। जो घड़ा खाली रहता है, उससे जल के छलकनेका डर रहता है, पानी छलकता रहता है।


इसी प्रकार जिस व्यक्ति में गंभीरता और सम्पन्नता रहती है वह बोलता कम है, उचित समय पर सही काम कर देता है। वास्तविकता यह है कि जो काम करता है वह दम्भ नही करता है, जो बरसता है वे गरजता नही, जो नहीं जानता है वे दिखाने का प्रयत्न करता है, किन्तु जो अधाभरा है वह छलक छलकर अपने को व्याप्त करने को कौशिश करता है। इसलिए कहा जाता है-अधजल गगरी छलकत जाए।



(ख) होनहार बिरबान के होत चिकने पात । 

उत्तर: जो बड़ा होकर प्रसिद्ध बनता है बचपन से भी उनका परिचय मिलता है। जैसे शिवाजी के बचपन से ही वीरता का प्रमाण हमको मिले थे। सतंत्र राज्य स्थापना को कल्पना वह बचपन से ही करते थे और आखिर एक दिन सफल भी हुए।



(ग) अब पछताए क्या होत जब चिडिय़ा चुग गई खेत।

उत्तर: इससे यह कहने की कोशिश करता है कि समय का काम समय पर नहीं करने से क्या नुकसान होता है यह बात सोचकर पछताने से कोई लाभ नही होगा। करने वाला काम समय मे ही करना चाहिए। विद्यार्थी समय पर नहीं पढ़ता, गाड़ी पकड़ने वाले समय पर स्टेसन नहीं पहुंचता तो पछताना जरुर होगा। अतः जो लोग समय का मुल्य को नहीं जानता है वह जीवन में उन्नति नहीं कर सकते।



(घ) जाको राखे साइयॉ मार सके न कोय ।

उत्तर: इससे यह कहा जाता है जिसको भगवान सहायता करते है उसको किसी ने भी मार नहीं सकते। प्रत्येक जीवों को भगवान सहायता करते है, सहारा देती है। जीवित रहने के शक्ति देते है। लेकिन इसके लिए हमे भगवान के नाम लेना चाहिए। हमे भगवान के प्रति विश्वासी होना चाहिए। हमको भी भगवान जीने के शक्ति देते है। इसको कहते हैं जाको राखे साइयाँ मार सके न कोई।




प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो अर्थ बताओ :


अंबर, उत्तर, काल, नव, पत्र, मित्र, वर्ण, हार, कल, कनक ।


उत्तर: अंबर : आकाश , व्योम । 


उत्तर : दिशा, जवाब।


काल : समय, नियति।


नव : नया , नूतन ।


पत्र : चिठ्ठी , खत ।


मित्र : दोस्त , बंधु ।


वर्ण : अक्षर , श्रेणी ।


हार : पराजय , पराभब ।


कल : ध्वनि , वीर्य ।


कनक : स्वर्ण , सोना ।



प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों-जोड़े के अर्थ का अंतर बताओ :


अगम : जहाँ गमन नहीं किया जाता है (अगम्य)।


दुर्गम : जहाँ गमन करना मुश्किल है।


अपराध : दोष।


पाप : अधर्म ।


अस्त्र : हथियार


शस्त्र : निक्षेप करनेवाली हथियार


आधि : मानसिक व्याथा ।


व्याधि : बीमार ।


दूख : क्लेश ।


खेद : थकावट


स्त्री : औरत


पत्नी : अर्धांगिनी । 


आज्ञा : आदेश । 


अनुमति : स्वीकृति ।


अहंकार : अभिमान।


गर्व : समर्थवान अंहभाव





नींव की ईंट Niv ki Int Class 10 Hindi Aalok Bhag 2 Important Questions Answers HSLC 2024 SEBA 


(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता ?

उत्तरः मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरा को देखने का कारण यह है कि दृुनिया चकमक की ओर नजर डालते हैं। लोग ऊपर का आवरण देखती है, आवरण क नीसे जो ठोस सत्य है उस पर ध्यान नहीं देते। इसलिए नीवं की ओर उतका ध्यान नही जाता। 



(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्या आह्वान किया है ?

उत्तरः लेखक ने कंगुरे के गीत के बजाय नीवं के गीत गाने के लिए इसलिए आहवान किया है कि नीवं की मजबूती और पुख्तेपर पर सारी इमारत की अस्ति-नास्ति निर्भर करती है। यदि नीवं की ईट को हिला दिया जाय तो कंगुरा बोतहाशा जमीन पर आ जायेगा ৷ 



(ग) सामान्यत: लोग कंगूरे की इंट बनना तो पर्संद करते हैं, परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते ?

उत्तरः लोग नीवं की ईट बनना नहीं चाहने का कारण यह है कि नीव्ं की ईंट अर्थात मौन बलिदान सोस और भह़ा होता है। सब लोग भदेपन से भागते हैं। इसलिए वे लोग नींव की ईट बनने से भी मागते हैं। यश-लोभी लोग केवल  प्रसि्धि प्रशंसा अथवा अन्यकिसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहते हैं। 



(घ) लेखक ईसाई धर्म की अमर बनाने का श्रेय किन्हें देना चाहता है और क्यों ? 

उत्तरः लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन्हें देना चाहता है, जिन्दीत जस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया। कारण उन में से कितसे जिंदा जलाए गए, कितने सूली पर चढ़ाए गए, कितने वन-बन भटककर  जंगली  जानवरों के शिकार हुए तथा भयानक भूख प्यास के शिकार हुए।



(ङ) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ ?

उत्तरः हमारा देश उनके बलिदानों के कारण आजाद नहीं हुआ, जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है। देश का शायद कोई ऐसा कोना हो, जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हो, जिनकी हद्दियों के दान ने ही विदेशी वृत्तासुर का नाश किया। 



(च) दधीचि मुनि ने किसलिए और किस प्रकार अपना बलिदान किया था ?

उत्तरः पौरानिक जमाने की बात है। स्वर्गलोक में देवता और असूरों के बीच लड़ाई चल रहे थे। देवतागण हर बार हार खाना पड़ा। आखिर इन्द्र का पता चला कि दधीचि मुनि की हट्दी से निमित बज्र द्वारा ही असूुरों का बध किये जा सकते हैं। देवतागण दधीचि मुनि के पास आया और लड़ाई के बारेमें बता दिया। देवतागणों के मंगल के लिए दधीचि अपना बलिदान किया था ।



(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है ?

उत्तरः भारत के नव-निर्माण के  बारे में लेखक ने कहा - इस नए समाज के  निर्माण के लिए भी हमें नीव की ईट चाहिए। अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों  होडा -होड़ी मची है, नीवे की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है। 



(ज) 'नींव की ईंट' शीर्षक निरबंध का संदेश क्या है ?

उत्तरः नीवं की ईट शीर्षक निबंध का यह संदेश है - आज कंगूरे की ईट बनने के लिए चारों ओर होड़-होड़ी मची है, नीवं की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है। इस रुप में भारतीय समाज का नव-निर्माण संभव नही। इसलिए लेखक ने देश के नौजवनों से आहवान किया है कि वे नीवं की ईट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और भारतीय समाज के नव-निर्माण में चूपचाप अपने को खपा दें।







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